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ट्रंप ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति को बताया 'झूठा', कहा ईरान-इजरायल में सीजफायर के लिए G7 नहीं छोड़ा
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ट्रंप ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति को बताया 'झूठा', कहा ईरान-इजरायल में सीजफायर के लिए G7 नहीं छोड़ा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि सात देशों के समूह G7 के शिखर सम्मेलन को बीच में छोड़कर जाने के उनके फैसले का इजरायल और ईरान के बीच युद्धविराम कराने की कोशिश से "कोई लेना-देना नहीं" है.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को झूठा करार दिया है. डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि सात देशों के समूह G7 के शिखर सम्मेलन को बीच में छोड़कर जाने के उनके फैसले का इजरायल और ईरान के बीच युद्धविराम कराने की कोशिश से "कोई लेना-देना नहीं" है. उन्होंने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की टिप्पणियों को गलत कहा है. मैक्रों ने कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने जंग लड़ते दोनों देशों (Israel Iran War) के बीच युद्धविराम का ऑफर रखा था.
दरअसल ट्रंप ने कनाडा में G7 शिखर सम्मेलन को खत्म होने से एक दिन पहले ही बीच में छोड़ दिया और वाशिंगटन डी.सी. लौट आए. अब उन्होंने अपने खुद के सोशल प्लेटफॉर्म ट्रूथ पर लिखा, "मैक्रों ने गलत कहा कि मैंने कनाडा में G7 शिखर सम्मेलन को छोड़ दिया, ताकि इजरायल और ईरान के बीच 'संघर्ष विराम' पर काम करने के लिए डी.सी. वापस जा सकूं."
ट्रंप ने पोस्ट में कहा, "गलत! उन्हें कोई अंदाजा नहीं है कि मैं अब वाशिंगटन क्यों जा रहा हूं, लेकिन निश्चित रूप से इसका सीजफायर से कोई लेना-देना नहीं है. यह उससे कहीं ज्यादा बड़ा है."
मैक्रों को पब्लिसिटी चाहिए- ट्रंप
मैक्रों ने कहा कि सोमवार को ट्रंप ने इजरायल और ईरान के बीच युद्धविराम की पेशकश की थी. मैक्रों ने G7 में रिपोर्टरों से कहा, "वास्तव में मिलने और आदान-प्रदान करने का एक ऑफर है. विशेष रूप से युद्धविराम कराने और फिर व्यापक चर्चा शुरू करने के लिए एक ऑफर दिया गया था." अब अपने ट्रुथ सोशल पोस्ट में, अमेरिकी राष्ट्रपति ने मैक्रों को "पब्लिसिटी चाहने वाला" नेता कहा और कहा: "चाहे जानबूझकर या नहीं, इमैनुएल हमेशा गलत होते हैं."
हालांकि वाशिंगटन में फ्रांसीसी दूतावास ने ट्रंप पर तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की है.
ईरान-इजरायल में क्या हैं हालात?
ईरान और अमेरिका के पार्टनर देश इजरायल के बीच हवाई युद्ध शुक्रवार को शुरू हुआ जब इजरायल ने ईरान पर हवाई हमला शुरू किया. दोनों के बीच जंग जारी है और इसने उस क्षेत्र (मिडिल ईस्ट) में चिंता और बढ़ा दी है जो अक्टूबर 2023 में गाजा पर इजरायल के सैन्य हमले की शुरुआत के बाद से ही खतरे में था.
शुक्रवार को इजरायली हमलों के बाद से ही दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच झड़पें हुई हैं. ईरानी अधिकारियों ने 220 से अधिक लोगों की मौत की सूचना दी है, जिनमें ज्यादातर नागरिक हैं, जबकि इजरायल ने कहा कि उसके 24 नागरिक मारे गए हैं.
इजरायल, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश लंबे समय से ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि तेहरान ने बार-बार कहा है कि वह न परमाणु हथियार बना रहा है और न ही उसकी कोई ऐसी इच्छा है. वाशिंगटन ने कहा कि ट्रंप अभी भी ईरान के साथ परमाणु समझौते का लक्ष्य बना रहे हैं.
G-7 समिट के लिए कनाडा के शहर कैलगरी में PM मोदी, जानें इस शहर की कहानी
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G-7 समिट के लिए कनाडा के शहर कैलगरी में PM मोदी, जानें इस शहर की कहानी
कैलगरी कनाडा के अल्बर्टा राज्य के दक्षिण‑पश्चिम में स्थित है. यह रॉकी पर्वतों से लगभग 80 कि.मी. पूर्व और एडमोंटन से लगभग 299 कि.मी. दक्षिण में स्थित है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2025 के G‑7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने कनाडा के अल्बर्टा प्रांत में स्थित कैलगरी पहुंच हैं. इसे वैश्विक कूटनीति में एक अहम कदम के रूप में देखा जा रहा है इस सम्मेलन में भारत को एक आमंत्रित अतिथि के रूप में शामिल किया गया है, जो भारत‑कनाडा के बीच हुए तनाव के बावजूद समझौता और सहयोग को दिखाते हैं . हालांकि कुछ समूहों, खासकर कुछ कट्टरपंथी खालिस्तानी संगठनों ने पीएम मोदी को मिले न्योते का विरोध किया . आइए जानते हैं यह शहर क्यों प्रसिद्ध है.
कैलगरी को आखिर क्यों कहा जाता है 'कनाडा की ऊर्जा राजधानी'?
कैलगरी अपने ऊर्जा और पेट्रोलियम उद्योग के केंद्र के रूप में विख्यात है. 20वीं सदी की शुरुआत में टर्नर वैली में विशाल तेल भंडार मिलने के बाद से इसे ‘कनाडा की तेल राजधानी' के तौर पर जाना जाता है . इसके अलावा, यह शहर अपने अलग जीवनशैली के लिए भी जाना जाता है. शहर के केंद्र में चमकदार स्काईस्क्रेपर और पास में ही स्थित पर्वत लोगों को बेहद पसंद आते हैं.
क्या आपको पता है? कैलगरी में हर गली में मिल जाएंगे भारतीय चेहरे!
कैलगरी शहर की स्थापना 1875 में नॉर्थ-वेस्ट माउंटेड पुलिस के एक पोस्ट के रूप में हुई, जिसे प्रारंभ में ‘Fort Calgary' कहा गया . इसका नाम स्कॉटलैंड के आइल ऑफ़ मुल पर स्थित कैलगरी किले पर रखा गया था, जो जनरल जेम्स मैकलेओड ने सुझाया था . यह क्षेत्र मूल रूप से इंडिजेनस ब्लैकफूट और स्टोनी समुदायों का घर था, जिन्हें उनके स्थानीय नाम ‘Mohkínstsis' और ‘Wîchîspa Oyade' से जाना जाता था.
क्या कैलगरी में भारतीयों की संख्या अधिक है?
हां, कैलगरी में भारतीय समुदाय की अच्छी-खासी उपस्थिति है. 2021 की जनगणना के अनुसार, शहर की आबादी में लगभग 11% दक्षिण एशियाई (भारतीय और पाकिस्तानी मूल) शामिल हैं . भारतीय मूल के लोग व्यवसाय, रोजगार और शिक्षा क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
स्टैम्पीड से लेकर ओलंपिक तक कैलगरी रहा है विख्यात
कैलगरी का सबसे प्रमुख आकर्षण ‘कैलगरी स्टैम्पीडे' है. यह एक 10‑दिन का विशाल रौडियो‑महोत्सव होता है जो जुलाई में होता है और लाखों दर्शकों को आकर्षित करता है . इसके अलावा, यह शहर 1988 में शीतकालीन ओलंपिक की मेजबानी भी कर चुका है, और इसके पास कनाडा का दूसरा‑सबसे बड़ा चिड़ियाघर, ग्लेनबो म्यूज़ियम तथा खूबसूरत प्राकृतिक स्थल हैं . सांस्कृतिक और खेल प्रेमी इस शहर को बेहद पसंद करते हैं.
पर्वतों के पास बसा ये शहर आखिर कनाडा के नक्शे में कहां है?
कैलगरी कनाडा के अल्बर्टा राज्य के दक्षिण‑पश्चिम में स्थित है. यह रॉकी पर्वतों से लगभग 80 कि.मी. पूर्व और एडमोंटन से लगभग 299 कि.मी. दक्षिण में स्थित है . शहर Bow River और Elbow River के संगम पर बसा हुआ है, जो पर्वतीय भू-आकृतियों और प्रेयरी भूमि के क्षेत्र में आता है . इसकी भूमिगत स्थानीयता इसे प्राकृतिक सौंदर्य और आर्थिक संभावनाओं दोनों के लिए उत्तम बनाती है. 2021 की जनगणना अनुसार, कैलगरी की शहर क्षेत्र की आबादी लगभग 13 लाख (13,06,784) थी, जबकि मेट्रो क्षेत्र में यह संख्या लगभग 14.8 लाख थी . यह कनाडा का तीसरा सबसे बड़ा शहर है और तेजी से बढ़ती महानगर क्षेत्रीय आबादी के साथ आर्थिक और शहरी विकास का एक प्रमुख केन्द्र माना जाता है.
जेब पर भारी या दिल को प्यारा? जानिए कैलगरी में रहने का खर्च
कैलगरी में रहने की लागत कनाडा के अन्य बड़े शहरों जैसे टोरंटो या वैंकूवर की तुलना में कम है. आवास, परिवहन और दैनिक खर्च के लिए औसत आय CAD 22 प्रति घंटे मानी जाती है. हालांकि, घर की कीमतों में उतार‑चढ़ाव होते रहते हैं, लेकिन पूरी तरह महंगा नहीं कहा जा सकता है. स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बातें इस शहर में उपलब्ध है जो लोगों को आकर्षित करती है.
साइप्रस में पीएम मोदी ने दुनिया को दिलाया भारत की ताकत का एहसास
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साइप्रस में पीएम मोदी ने दुनिया को दिलाया भारत की ताकत का एहसास
विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव विक्रम मिसरी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल साइप्रस के साथ वार्ता में मौजूद थे। पीएम मोदी रविवार को साइप्रस पहुंचे। वहां ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘यह यात्रा भारत-साइप्रस संबंधों को विशेष रूप से व्यापार, निवेश और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण गति प्रदान करेगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस के साथ शिष्टमंडल स्तर की वार्ता की जिसमें द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा की गई। मोदी वर्तमान में साइप्रस की यात्रा पर हैं, जो उनके तीन देशों के दौरे का पहला चरण है। वार्ता से पहले राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री के आगमन पर उनका औपचारिक स्वागत किया गया। बाद में, मोदी ने क्रिस्टोडौलिडेस के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता की। उन्होंने पिछले 10 साल के कार्यकाल में भारत की आर्थिक प्रगति को रेखांकित किया।
कहा कि नीति-निर्माण में स्थिरता, व्यावसायिक वातावरण में सुधार, डिजिटल क्रांति और अगली पीढ़ी के सुधारों ने भारत को विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना दिया है। “भारत आज विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बहुत जल्द यह तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। भारत में जीएसटी जैसे कर सुधार, कॉरपोरेट टैक्स में कटौती, कानूनों का अपराधीकरण खत्म करना, और व्यापार में विश्वास बढ़ाने जैसे कई बड़े बदलाव हुए हैं।”
साइप्रस के साथ इन क्षेत्रों में और मजबूत होगा सहयोग
इस अवसर पर पीएम मोदी ने साइप्रस के साथ द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती की संभावनाओं पर बल दिया और कहा कि भारत और साइप्रस के बीच व्यापार, निवेश, डिजिटल भुगतान, पर्यटन, रक्षा, लॉजिस्टिक्स और स्टार्टअप जैसे क्षेत्रों में गहरा सहयोग हो सकता है। पीएम मोदी ने कहा कि भारत की डिजिटल क्रांति का असर पूरी दुनिया में देखा जा रहा है। “आज दुनिया के 50 प्रतिशत डिजिटल लेन-देन भारत में होते हैं, जिसका श्रेय यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को जाता है,” उन्होंने कहा। इस क्रम में NPCI इंटरनेशनल और यूरोबैंक साइप्रस के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिससे दोनों देशों के बीच सीमा-पार भुगतान संभव हो सकेगा।
साइप्रस के साथ कई समझौते पर हस्ताक्षर
साइप्रस और भारत में इस दौरान महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें NSE इंटरनेशनल एक्सचेंज (गिफ्ट सिटी, गुजरात) और साइप्रस स्टॉक एक्सचेंज के बीच सहयोग स्थापित किया गया है। यह यूरोप और भारत के बीच ऐसा पहला वित्तीय सहयोग है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि कई भारतीय कंपनियां साइप्रस को यूरोप के लिए एक प्रवेश द्वार के रूप में देखती हैं, खासकर आईटी, पर्यटन और वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में।
23 साल बाद साइप्रस पहुंचे भारत के पीएम
पीएम मोदी ने कहा कि "23 वर्षों में यह पहला अवसर है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री साइप्रस आया है और पहला कार्यक्रम एक बिजनेस राउंडटेबल था, जो कि यह इस बात को दर्शाता है कि दोनों देशों के आर्थिक संबंध कितने महत्वपूर्ण हैं।"
भारत-ग्रीस और साइप्रस के बीच भी हुई ये बड़ी डील
भारत–ग्रीस–साइप्रस ने मिलकर एक त्रिपक्षीय व्यापार एवं निवेश परिषद (IGC) की स्थापना की घोषणा की है। जिससे शिपिंग, ग्रीन एनर्जी, एविएशन और डिजिटल सेवाओं जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। साइप्रस और तुर्की के बीच लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक तनाव के परिप्रेक्ष्य में भी प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा को रणनीतिक दृष्टि से भी अहम माना जा रहा है।
मोदी ने साइप्रस में भी कहा-यह युग युद्ध का नहीं
पीएम मोदी ने साइप्रस के राष्ट्रपति के साथ वार्ता के बाद कहा, यह युद्ध का युग नहीं है। उन्होंने और साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस ने पश्चिम एशिया और यूरोप में चल रहे संघर्षों पर ‘‘चिंता जताई’’ और उन दोनों का मानना है कि ‘‘यह युद्ध का युग नहीं है।’ बातचीत के जरिए समाधान और स्थिरता बहाल करने की जरूरत है।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी यात्रा भारत-साइप्रस संबंधों में एक नया अध्याय लिखने का एक ‘‘स्वर्णिम अवसर’’ है।
PM मोदी ने साइप्रस के राष्ट्रपति के साथ इन बड़े मुद्दों पर की बात
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PM मोदी ने साइप्रस के राष्ट्रपति के साथ इन बड़े मुद्दों पर की बात
PM Modi in Cyprus: पीएम नरेंद्र मोदी 23 वर्षों में साइप्रस की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं. जानिए दोनों देशों के बीच क्या सहमति बनी है.
साइप्रस की ऐतिहासिक यात्रा पर गए भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि लोकतंत्र और कानून के शासन में आपसी विश्वास हमारे संबंधों की मजबूत नींव है. साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडोलाइड्स के साथ एक ज्वाइंट प्रेस मीट में पीएम मोदी ने यह द्विपक्षीय संबंधों में नया अध्याय लिखने का स्वर्णिम अवसर है. वहीं साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस ने कहा है कि साइप्रस सभी प्रकार के आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ खड़ा है. पीएम मोदी ने साइप्रस के राष्ट्रपति को भारत आने का न्योता भी दिया है.
पीएम मोदी के भाषण की 7 बड़ी बातें
"अभी कुछ देर पहले ही मुझे साइप्रस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से अलंकृत किया गया. ये सम्मान केवल मेरा नहीं, 140 करोड़ भारतीयों का सम्मान है. ये भारत और साइप्रस की अटूट मित्रता की मोहर है. इसके लिए मैं एक बार फिर हृदय से आभार व्यक्त करता हूं."
"दो दशक से भी लंबे अंतराल के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस यात्रा हो रही है, और ये आपसी संबंधों में एक नया अध्याय लिखने का स्वर्णिम अवसर है. आज राष्ट्रपति जी और मैंने द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर व्यापक चर्चा किया. साइप्रस के विजन 2035 और विकसित भारत 2047 के कई पहलुओं में समानता है, इसलिए हम साथ मिलकर भविष्य को आकार देंगे."
"क्रॉस-बॉर्डर टेररिज्म के विरुद्ध भारत की लड़ाई में साइप्रस के सतत समर्थन के हम आभारी हैं. आतंकवाद, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी की रोकथाम के लिए, हमारी एजेंसीज के बीच रियल टाइम में जानकारियों के आदान-प्रदान का मैकेनिज्म तैयार किया जायेगा."
"अपनी साझेदारी को स्ट्रेटेजिक दिशा देने के लिए हम अगले पांच वर्षों के लिए एक ठोस रोड मैप बनायेंगे. रक्षा और सुरक्षा सहयोग को और मजबूती देने के लिए द्विपक्षीय डिफेंस कोऑरेशन प्रोग्राम के तहत रक्षा उद्योग पर बल दिया जायेगा. साइबर और मैरीटाइम सिक्योरिटी पर अलग से डायलॉग शुरू किया जायगा."
"साइप्रस द्वारा सिक्योरिटी काउंसिल में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करने के लिए हम आभारी है."
"हम सहमत हैं कि इंडिया- मिडिल ईस्ट- यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर से क्षेत्र में शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा."
"हमने पश्चिम एशिया और यूरोप में चल रहे संघर्षों पर चिंता व्यक्त की. हमारा मानना है कि यह युद्ध का युग नहीं है."
पीएम मोदी को मिला साइप्रस का सर्वोच्च सम्मान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सोमवार को साइप्रस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस तृतीय' से सम्मानित किया गया. प्रधानमंत्री ने पुरस्कार प्राप्त करने के बाद कहा, ‘‘साइप्रस के ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस तृतीय' सम्मान को प्राप्त करके मैं बहुत खुश हूं. मैं इसे हमारे देशों के बीच की मित्रता को समर्पित करता हूं.''
साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस ने मोदी को सम्मानित किया. इस सम्मान का नाम साइप्रस के पहले राष्ट्रपति आर्चबिशप मकारियोस तृतीय के नाम पर रखा गया है. प्रधानमंत्री मोदी ने 140 करोड़ भारतीयों को यह सम्मान समर्पित करते हुए कहा कि यह भारत-साइप्रस की भरोसेमंद दोस्ती का सम्मान है.
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में हमारी सक्रिय साझेदारी नई ऊंचाइयों को छुएगी. हम मिलकर न केवल अपने दोनों देशों की प्रगति को मजबूत करेंगे बल्कि एक शांतिपूर्ण और सुरक्षित विश्व के निर्माण में भी योगदान देंगे.''
PM मोदी को साइप्रस में मिला सर्वोच्च नागरिक सम्मान
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PM मोदी को साइप्रस में मिला सर्वोच्च नागरिक सम्मान
PM Modi in Cyprus: 23 वर्षों में साइप्रस की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साइप्रस के राष्ट्रपति, निकोस क्रिस्टोडोलाइड्स ने ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस III से सम्मानित किया
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को साइप्रस ने अपना सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से नवाजा है. 23 वर्षों में साइप्रस की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साइप्रस के राष्ट्रपति, निकोस क्रिस्टोडोलाइड्स ने ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस III से सम्मानित किया है. पीएम मोदी रविवार को इस भूमध्यसागरीय द्वीप देश पहुंचे हैं जहां राष्ट्रपति निकोस ने एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मान मिलने के बाद कहा, "राष्ट्रपति, ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस III के लिए, मैं आपका, साइप्रस सरकार और साइप्रस के लोगों का दिल से आभार व्यक्त करता हूं. यह सिर्फ नरेंद्र मोदी का नहीं बल्कि 140 करोड़ भारतीयों का सम्मान है. यह उनकी क्षमताओं और आकांक्षाओं का सम्मान है. यह हमारी संस्कृति, भाईचारे और वसुधैव कुटुंबकम की विचारधारा का सम्मान है. मैं इसे भारत और साइप्रस के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों, हमारे साझा मूल्यों और आपसी समझ के लिए समर्पित करता हूं... सभी भारतीयों की ओर से, मैं इस सम्मान को बहुत विनम्रता और कृतज्ञता के साथ स्वीकार करता हूं. यह पुरस्कार शांति, सुरक्षा, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और हमारे लोगों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है."
"...मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में हमारी सक्रिय साझेदारी नई ऊंचाइयों को छुएगी. साथ मिलकर, हम न केवल अपने दोनों देशों की प्रगति को मजबूत करेंगे बल्कि एक शांतिपूर्ण और सुरक्षित वैश्विक वातावरण के निर्माण में भी योगदान देंगे..."- पीएम मोदी
पीएम मोदी का साइप्रस दौरा- अबतक क्या हुआ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस के साथ निकोसिया में एक व्यापार जगत के लोगों के साथ गोलमेज बैठक में हिस्सा लिया और व्यापार, निवेश एवं रक्षा जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने का आह्वान किया, जिसमें ‘‘विकास की अपार संभावनाएं'' हैं.
अधिकारियों के अनुसार, प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान सीमा पार लेनदेन के लिए साइप्रस में यूपीआई सेवाएं शुरू करने के उद्देश्य से भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) और साइप्रस के यूरोबैंक के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए. अपने संबोधन में मोदी ने कहा कि यूपीआई की वजह से आज दुनिया के 50 प्रतिशत डिजिटल लेनदेन भारत में होते हैं. उन्होंने कहा कि यह यूरोप और ‘गिफ्ट सिटी इंडिया' के बीच अपनी तरह की पहली व्यवस्था है और इससे गिफ्ट सिटी, साइप्रस और यूरोप के निवेशकों को लाभ होगा.
बैठक से पहले ‘एक्स' पर एक वीडियो मैसेज में जायसवाल ने कहा कि मंच में ‘‘स्टार्टअप, नवाचार, डिजिटल भुगतान, नौवहन, जहाज निर्माण, बंदरगाहों आदि जैसे नए क्षेत्रों में भारत-साइप्रस व्यापार साझेदारी को मजबूत करने के तरीकों के बारे में विचारों की पहचान की जाएगी, उन पर बातचीत की जाएगी और चर्चा की जाएगी."
भारत के साथ लगातार खड़ा रहा है साइप्रस
साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिड्स द्वारा लारनाका अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर औपचारिक सम्मान के साथ स्वागत किए जाने से इस यात्रा ने भारत-साइप्रस संबंधों में नई गति का संकेत दिया, जिसमें दोनों देशों ने व्यापार, प्रौद्योगिकी, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में गहन सहयोग के लिए प्रतिबद्धता जताई. साइप्रस में भारतीय प्रवासियों ने प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का स्वागत "वंदे मातरम" और "भारत माता की जय" के नारों के साथ किया.
साइप्रस ने वैश्विक मुद्दों पर भारत के रुख का लगातार समर्थन किया है, जिसमें सीमा पार से आतंकवाद की निंदा भी शामिल है.
भारत की आंतरिक नीतियों की तुर्की द्वारा हाल ही में की गई आलोचना के विपरीत, साइप्रस एक विश्वसनीय सहयोगी के रूप में उभरा है, जिसने संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत की आकांक्षाओं की वकालत की है.
परमाणु बम को ईरान के लिए 'दवा' बताने वाले टॉप साइंटिस्ट को इजरायल ने मार डाला
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परमाणु बम को ईरान के लिए 'दवा' बताने वाले टॉप साइंटिस्ट को इजरायल ने मार डाला
अब्बासी ईरान के न्यूक्लियर के एनर्जी संगठन के पूर्व प्रमुख रह चुके थे. दो दशकों से उन्हें ईरान के परमाणु कार्यक्रम और इसके डेवलपमेंट का एक अहम शख्स करार दिया जा रहा था.
'अगर हम हमला नहीं करते तो 100 फीसदी तय है कि हम मारे जाएंगे,' शुक्रवार को कुछ इन शब्दों के साथ इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करने के बाद देश और दुनिया को एक संदेश दिया. इजरायल ने ईरान के लिए रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण न्यूक्लियर फैसिलिटीज को निशाना बनाया है. इजरायली सेनाओं ने नातान्ज और बाकी संवेदनशील जगहों पर टारगेटेड हमले किए हैं. इन हमलों में ईरान के न्यूक्लियर साइंटिस्ट फेरेदून अब्बासी की भी मौत हो गई है. अब्बासी को यूनाइटेड नेशंस ने भी बैन किया हुआ था. यह बात और है कि वह हमेशा ईरान के परमाणु कार्यक्रम को 'शांति की मकसद' से शुरू किया हुआ प्रोग्राम बताते थे.
ईरान के एक्यू खान
अब्बासी ईरान के न्यूक्लियर के एनर्जी संगठन के पूर्व प्रमुख रह चुके थे. दो दशकों से उन्हें ईरान के परमाणु कार्यक्रम और इसके डेवलपमेंट का एक अहम शख्स करार दिया जा रहा था. अब्बासी अक्सर कहते थे कि ईरान के परमाणु प्रयास शांतिपूर्ण हैं और यह राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए जरूरी हैं. अब्बासी को आप ईरान का एक्यू खान कह सकते हैं. एक्यू खान वह शख्स थे जिनकी वजह से पाकिस्तान परमाणु क्षमता से लैस हुआ था.
2010 में बचे थे बाल-बाल
अब्बासी साल 2010 में उस समय बाल-बाल बचे थे जब तेहरान में एक मोटरसाइकिल सवार ने उनकी कार में एक्सप्लोसिव डिवाइस लगा दी थी. यह घटना ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाकर किये गए हमलों की सीरीज का ही हिस्सा थी. हालांकि इसका दोष भी इजरायल को दिया गया था. साल 2007 में ईरान ने अपनी कुछ न्यूक्लियर फैसिलिटीज को दुनियाभर की मीडिया के लिए खोला था. उसी समय से अब्बासी इंटरनेशनल मीडिया में चर्चा का विषय बने हुए थे.
ईरान की इस्फहान सिटी में यूरेनियम एनरिचमेंट फैसिलिटी सेंटर पर अब्बासी ने कुछ जर्नलिस्ट्स से मुलाकात भी की थी. अब्बासी उन दिनों आधिकारिक तौर पर उत्तरी तेहरान में शाहिद बेहेश्टी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे और वेबसाइट की मानें तो वह स्टूडेंट्स एंड कल्चरल अफेयर्स के डिप्टी थे. उन छात्र स्वास्थ्य देखभाल और हॉस्टल की जिम्मेदारी थी. उन्होंने यूनिवर्सिटी में न्यूक्लियर इंजीनियरिंग भी पढ़ाई.
न्यूक्लियर रिसर्च को किया प्रोत्साहित
अब्बासी का काम का मुख्य तौर पर घरेलू ईरानी न्यूक्लियर रिसर्च को प्रोत्साहित करना था. वह मानते थे कि विदेशों में ईरानी छात्रों पर लगे बैन ने ईरानी छात्रों के लिए इस फील्ड में रिसर्च को मुश्किल बना दिया है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'पश्चिमी देशों ने ईरानी छात्रों पर जो बैन लगाया है उसका मकसद सिर्फ उन्हें परमाणु क्षेत्र और संबंधित इंजीनियरिंग क्षेत्रों में रिसर्च और काम करने से रोकना है. ऐसे में हमनें उन्हें इस क्षेत्र का ज्ञान देने के लिए एक प्रयास शुरू करने का फैसला किया.'
'मैं बनाऊंगा ईरान के लिए बम'
ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर दुनियाभर की चिंताओं को अब्बासी सिर्फ एक ऐसा जरिया मानते थे जो उनके देश पर दबाव बना सकता था. उन्होंने सीएनएन और वॉल स्ट्रीट जनरल के साथ काम कर चुके जर्नलिस्ट नाथन हॉज को 2007 में दिए इंटरव्यू में कहा था, 'ईरान का परमाणु मुद्दा कुछ ऐसा है जैसे तेल, दवा, कृषि. और उन्हें पता होना चाहिए कि अगर आप चाकू से संतरे का छिलका छील सकते हैं तो आप इससे किसी को भी मार सकते हैं.'
एक कट्टरपंथी विचारधारा वाले अब्बासी 2020 से 2024 तक संसद के सदस्य थे. मई में उन्होंने एक इंटरव्यू दिया था. इसमें उनसे पूछा गया था कि वह खुशी-खुशी हथियार बनाने में मदद करेंगे? मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने ईरान के आउटलेट एसएनएन से कहा, 'अभी तक हमें परमाणु बम बनाने का आदेश नहीं मिला है. लेकिन अगर वो मुझे इसे बनाने के लिए कहते हैं, तो मैं इसे बनाऊंगा.'
मौत के डर को टाल गए
इसी इंटरव्यू में अब्बासी से मौत के डर के बारे में पूछा गया था और वह इस सवाल को टाल गए थे. उन्होंने कहा था कि परमाणु कार्यक्रम पर उनका काम युवा पीढ़ी के साथ जीवित रहेगा. जब उनसे परमाणु हथियार बनाने की समय सीमा के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, 'छह महीने, एक महीना, एक साल या एक दिन, कोई समयसीमा तय करना एक गलती है. एक बार फैसला हो जाने के बाद, आपको कुछ छोटे बदलाव करने होंगे. अगर आप यूरेनियम के साथ काम करते हैं तो आपको 90 प्रतिशत एनरिच्ड यूरेनियम की जरूरत होगी. अब्बासी ने यह दावा भी किया था कि अगर ईरान का परमाणु बुनियादी ढांचा नष्ट हो जाता है, तो भी 'कुछ नहीं होगा'.
'जो हम से बन पड़ा, हमने किया...', प्रतिनिधिमंडल का अमेरिका दौरा समाप्त होने के बाद शशि थरूर ने लिखा भावुक पोस्ट
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'जो हम से बन पड़ा, हमने किया...', प्रतिनिधिमंडल का अमेरिका दौरा समाप्त होने के बाद शशि थरूर ने लिखा भावुक पोस्ट
कांग्रेस सांसद शशि थरूर के नेतृत्व में सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिकी दौरे पर गया हुआ था। अब ये दौरा समाप्त हो गया है। इस दौरान थरूर ने पाकिस्तान को आतंक के मुद्दे पर बेनकाब किया है।
शशि थरूर के नेतृत्व में सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार को अमेरिका दौरा समाप्त किया। इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस और उप विदेश मंत्री क्रिस्टोफर लांडाउ समेत कई राजनयिक एवं राजनीतिक नेताओं से मुलाकात कर पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद के खिलाफ भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति को रेखांकित किया।
थरूर ने एक्स पर हिंदी में लिखी ये भावुक पोस्ट
इसके साथ ही रविवार देर रात शशि थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर हिंदी में भावुक पोस्ट लिखी है। इस पर थरूर ने एक कविता के माध्यम से लिखा कि जो हम से बन पड़ा, हमने किया, जो सच था, दुनिया ने जान लिया....' थरूर ने एक्स पर लिखा,
'सौ बार जन्म लेंगे तो सौ बार करेंगे
जी भर के अपने वतन से प्यार करेंगेजो हम से बन पड़ा, "अ वतन" हमने किया हैजो सच था, सारी दुनिया ने अब जान लिया है'
समस्त सदस्यों की तरफ से मातृभूमि का और देश-विदेश में हिंदुस्तान प्रेमियों का बहुत-बहुत आभार जिन्होंने कान खोल कर सुना और दिल खोल कर स्वीकार किया कि हम अहिंसा प्रेमी हैं मगर तब तक, जब तक कोई ... जय हिंद!
थरूर के नेतृत्व में अमेरिका पहुंचा था प्रतिनिधिमंडल
कांग्रेस सांसद शशि थरूर के नेतृत्व में यह प्रतिनिधिमंडल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत की संपर्क पहल के तहत अमेरिका पहुंचा था। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के जवाब में भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया था।
33 वैश्विक राजधानियों में गया ये प्रतिनिधिमंडल
यह प्रतिनिधिमंडल उन सात सर्वदलीय भारतीय प्रतिनिधिमंडलों में से एक था, जिन्हें 33 वैश्विक राजधानियों में भेजा गया था, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की आतंकवाद में संलिप्तता के बारे में अवगत कराया जा सके।
3 जून को पहुंचा वॉशिंगटन
प्रतिनिधिमंडल 3 जून को अमेरिकी राजधानी वॉशिंगटन पहुंचा और तीन दिनों के दौरान ‘कैपिटल हिल’ में अमेरिकी सांसदों, विदेश नीति विशेषज्ञों, विचारक संस्थाओं के प्रतिनिधियों, मीडिया एवं प्रवासी भारतीय समुदाय से मुलाकात की।
थरूर ने जेडी वेंस के साथ हुई मुलाकात को बताया- एक्सीलेंट
थरूर ने व्हाइट हाउस में अमेरिका के उपराष्ट्रपति वेंस से हुई लगभग 25 मिनट की मुलाकात को 'एक्सीलेंट' बताया। उन्होंने कहा, 'वेंस ने पहलगाम हमले को लेकर आक्रोश और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत की संयमित प्रतिक्रिया के प्रति समर्थन जताया।'
संविधान की ताकत ही है कि... लंदन में जब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने बताई अपने कंस्टिट्यूशन की खासियत
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संविधान की ताकत ही है कि... लंदन में जब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने बताई अपने कंस्टिट्यूशन की खासियत
चीफ जस्टिस गवई (CJI Gavai) ने कहा कि यह कहते हुए भी उनको गर्व होता है कि भारत के पास एक हाशिए पर पड़े वर्ग और साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं. देश के संविधान की वजह से ही वह इस पद तक पहुंचे हैं.
भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई ने लंदन के ग्रेज़ इन में 'भारत के संविधान के 75 साल का जीवंत दस्तावेज और डॉ अंबेडकर की स्थायी प्रासंगिकता' विषय पर कई अहम बातें कहीं. उन्होंने भारत के संविधान की ताकत को दुनिया के सामने रखा. CJI ने कहा कि भारत के संविधान (CJI Gavai Over Indian Constitution) ने 75 वर्ष पूरे कर लिए हैं, यह बहुत ही संयोग की बात है कि आदिवासी वर्ग की एक महिला भारत की राष्ट्रपति हैं. वहीं हमारे देश के प्रधानमंत्री भी पिछड़े वर्ग से आते हैं.
संविधान की वजह से ही वह CJI पद तक पहुंचे
सीजेआई ने कहा कि उनको यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि यह सिर्फ भारतीय संविधान की वजह से ही संभव हो पाया है कि वह पीएम मोदी इस पद पर आसीन हो पाए हैं. चीफ जस्टिस गवई ने कहा कि यह कहते हुए भी उनको गर्व होता है कि भारत के पास एक हाशिए पर पड़े वर्ग और साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं. देश के संविधान की वजह से ही वह देश के मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुंचे हैं.
लंदन में CJI ने बताई संविधान की ताकत
लंदन में उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है कि 75 सालों में भारत में दो महिला राष्ट्रपति रहीं, जिनमें से वर्तमान राष्ट्रपति सबसे हाशिए पर पड़े आदिवासी समुदायों में से एक से हैं. उन्होंने आगे कहा कि भारत में एक महिला प्रधानमंत्री रहीं, एक दलित मुख्य न्यायाधीश रहे, दलित समुदाय से आने वाले लोकसभा के दो स्पीकर भी रहे. वहीं हमारे पास तीन संवैधानिक प्रमुख हैं, जो हाशिए पर पड़े वर्ग से आते हैं, और संयोग से हमारे पास एक कानून मंत्री भी हैं जो हाशिए पर पड़े वर्ग से आते हैं. ये सब सिर्फ भारत के संविधान की वजह से ही संभव हो सका है.
ट्रंप की अलटी-पलटी पॉलिसी से ‘ICU’ में अमेरिका की इकनॉमी?
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ट्रंप की अलटी-पलटी पॉलिसी से ‘ICU’ में अमेरिका की इकनॉमी?
जेपी मॉर्गन चेज के मुख्य कार्यकारी (CEO) जेमी डिमन ने ट्रंप प्रशासन की आर्थिक नीतियों के कारण अमेरिका के उभरते ऋण बाजार संकट के खतरे पर चिंता व्यक्त की है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में उनके विरोधी से लेकर उनके कट्टर समर्थक तक, एक बात पर आम सहमति रखते हैं- वो ये कि ट्रंप अन्प्रिडिक्टेबल हैं. यानी वो आगे क्या करेंगे, किसी को नहीं पता. जनवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर बैठने के बाद से ट्रंप ने टैरिफ से लेकर डिपोर्टेशन तक, तमाम मुद्दों पर ऐसे स्टैंड लिए हैं जिसकी उम्मीद शायद ही किसी ने आज से 6 महीने पहले लगाई थी. कमाल है कि ट्रंप अपने उन फैसलों पर टिके रहेंगे, इसका भी कोई दावा नहीं कर सकता. वो अपने अतरंगी बयानों की तरह ही फैसले लेने के बाद उससे यूटर्न लेने के लिए भी जाने जाते हैं. ट्रंप के इन फ्लिप-फ्लॉप पॉलिसी का सबसे बड़ा असर अमेरिका के साथ-साथ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर देखने को मिल रहा है. हालांकि पहली मार अमेरिका को ही लगती दिख रही है. जेपी मॉर्गन चेज के मुख्य कार्यकारी (CEO) जेमी डिमन ने ट्रंप प्रशासन की आर्थिक नीतियों के कारण अमेरिका के उभरते ऋण बाजार संकट के खतरे पर चिंता व्यक्त की है.
ट्रंप की आर्थिक नीति- अमेरिका के लिए खतरे की घंटी?
जेमी डिमन ने फॉक्स बिजनेस नेटवर्क के "मॉर्निंग्स विद मारिया" शो में अपनी बात रखी है. उन्होंने इस इंटरव्यू में मारिया बार्टिरोमो को बताया कि "यह (ऋण बाजार संकट) एक बड़ी बात है. यह एक वास्तविक समस्या है.. बॉन्ड बाजार में कठिन समय आने वाला है. मुझे नहीं पता कि यह छह महीने में आएगा या छह साल में."
डिमन ने आगाह किया कि एक बार जब निवेशक बढ़ते ऋण स्तर के प्रभाव के बारे में जान जाएंगे, तो ब्याज दरें आसमान छू जाएंगी और बाजार बाधित हो जाएंगे. उनके अनुसार यह बात दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी अमेरिका के लिए एक खतरनाक परिदृश्य है.
उन्होंने कहा कि निवेशक देश, कानून के शासन, महंगाई दरों, केंद्रीय बैंक नीतियों को देख रहे हैं. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि "अगर लोग तय करते हैं कि अमेरिकी डॉलर में निवेश करना उनके लिए सही जगह नहीं है," तो अमेरिकी ऋण का वित्तपोषण करना और अधिक महंगा हो जाएगा. गौरतलब है कि ऐतिहासिक रूप से अमेरिका अपनी अर्थव्यवस्था को सपोर्ट करने के लिए कम ब्याज वाले अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड पर भरोसा करता रहा है. उसे दिखता है कि बाजार में उसके ट्रेजरी बॉन्ड की मांग है.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विभाजनकारी बजट योजना के बारे में चिंताओं के बीच, पिछले सप्ताह इन ट्रेजरी बॉन्ड से होने वाली कमाई (ईल्ड) थोड़े समय के लिए बढ़ा दी थी. यह योजना अन्य बातों के अलावा, ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान शुरू की गई भारी कर छूट (टैक्स रिबेट) का विस्तार करेगी, जिससे अमेरिका की संघीय घाटा बढ़ने की आशंका बढ़ जाएगी.
मई के मध्य में ऐसा पहली बार हुआ जब अमेरिका ने मूडीज़ से अपनी ट्रिपल-ए क्रेडिट रेटिंग खो दी. मूडीज ने इसे डाउनग्रेड (घटाकर) करके इसे AA1 कर दिया है. इस रेटिंग एजेंसी ने चेतावनी दी कि उसे उम्मीद है कि अगले दशक में अमेरिका का संघीय घाटा नाटकीय रूप से बढ़ेगा.
ट्रंप खुद दे रहे इकनॉमी को झटका, लेकिन मानने को तैयार नहीं
ट्रंप की दुनिया भर के देशों पर भारी टैरिफ लगाने की बार-बार घोषणाएं भी काफी अनिश्चितता पैदा कर रही हैं. इसकी वजह से बाजार में अस्थिरता पैदा हो रही है. जेमी डिमन ने पहले ही अप्रैल में टैरिफ, व्यापार युद्ध, महंगाई और बजट घाटे के प्रभाव की ओर इशारा करते हुए अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर "काफी अशांति" की चेतावनी दी थी.
हालांकि दूसरी तरफ अमेरिका के ट्रेजरी सचिव (वित्त मंत्री) स्कॉट बेसेंट ने रविवार को ऋण बाजार संकट को लेकर डिमन की तरफ से की गई भविष्यवाणियों को खारिज कर दिया. बेसेंट ने सीबीएस पर दिए एक इंटरव्यू के दौरान कहा, "मैं जेमी को लंबे समय से जानता हूं और अपने पूरे करियर के दौरान उन्होंने इसी तरह की भविष्यवाणियां की हैं.. सौभाग्य से, उनमें से सभी सच नहीं हुए हैं."
बेसेंट ने यह स्वीकार किया कि वह कर्ज के स्तर को लेकर चिंतित हैं लेकिन उन्होंने कहा, "इस साल घाटा पिछले साल के घाटे से कम होगा और दो साल में यह फिर से कम हो जाएगा." बेसेंट ने कहा, "हम घाटे को धीरे-धीरे कम करने जा रहे हैं.” उन्होंने जोर देकर कहा कि घाटे को सही करना एक "लंबी प्रक्रिया" है. उन्होंने कहा कि "लक्ष्य अगले चार वर्षों में इसे कम करना है, (और) 2028 में देश को अच्छी स्थिति में छोड़ना है."
18 महीने, ट्रकों में छिपे सैकड़ों ड्रोन और सोते रह गए पुतिन.. यूक्रेन ने रूस को घर में घुसकर कैसे मारा?
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18 महीने, ट्रकों में छिपे सैकड़ों ड्रोन और सोते रह गए पुतिन.. यूक्रेन ने रूस को घर में घुसकर कैसे मारा?
यूक्रेन ने रूस के खिलाफ ‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब’ चलाया है. यूक्रेन के ड्रोन रूस के अंदर साइबेरिया तक घुस आए और उन्होंने रूस के 4 सैन्य हवाई अड्डों पर हमला किया.
साल 2022 की फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरु हुआ और तीन साल से अधिक वक्त के बाद यूक्रेन ने सबसे बड़ा पलटवार किया है. रविवार, 1 जून को यूक्रेन ने ड्रोन के जरिए रूस के भीतर सबसे बड़ा हमला किया. इसे ऑपरेशन स्पाइडरवेब का नाम दिया गया. इस हमले में रूस के चार एयरबेस को निशाना बनाया गया. इनमें मॉस्को के पास के दो क्षेत्रों इवानोवो और र्याजान के अलावा मुर्मास्क और इरकुत्स्क क्षेत्र तक के एयरबेस पर हमला किया गया जिसकी रूस सीमा से हवाई दूरी करीब साढ़े चार हजार किलोमीटर है. यानी रूस को रूस में घुसकर मारा है. यूक्रेन के इन हमलों को रूस के लिए पर्ल हार्बर मोमेंट भी कहा जा रहा है.
सवाल है कि इतने बड़े पैमाने पर और इतनी दूर तक यूक्रेन के ड्रोन्स ने कैसे मार किया. क्यों रूस का एयर डिफेंस सिस्टम इसे पकड़ पाने में नाकाम रहा. चलिए आपको बताते हैं.18 महीने की प्लानिंग और रूस को संभलने का मौका नहीं मिलायूक्रेन की तरफ से आ रही रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन की सेक्यूरिटी सर्विस ने रूस पर इतने बड़े ड्रोन हमले की योजना पर डेढ़ साल पहले काम करना शुरु किया. इसके लिए FPV ड्रोन्स के पैकेट्स को रूस के भीतर पहुंचाया. इसे किस तरह पहुंचाया गया ये खुलासा नहीं किया गया है. इसके बाद ड्रोन को कंटेनरनुमा बक्सों में कतार से सजाया गया. इन कंटेनरों का ढक्कन रिमोट कंट्रोल से खिसकाया जा सकता था. इन कंटेनरों को लकड़ी के बड़े केबिन के भीतर रखा गया. ट्रक पर रखे इन केबिनों के छत को भी रिमोट कंट्रोल से खुलने वाला बनाया गया.
उन बक्सों को ट्रक पर लकड़ी के बने कंटेनरनुमा घरों के अंदर रखा गया. सही समय पर ट्रकों की केबिन की छत को खोला गया और हमले के लिए ड्रोन उड़ाया गया. जो तस्वीर सामने आयी है उसमें साफ देखा जा सकता है कि कैसे ड्रोन ट्रक पर लदे केबिन की छत से निकल रहे हैं और रूस के ठिकानों पर हमले कर रहे हैं. ये भी जानकारी आयी है कि स्पाइडर वेब योजना को अंजाम देने वाले एजेंट पहले ही यूक्रेन लौट चुके हैं. इस हमले की प्लानिंग और एक्जेक्यूशन देखें तो ये कुछ कुछ लेबनान में इजरायल की तरफ से किए गए पेजर धमाकों जैसा लगता है.
बातचीत के दूसरे दौर से पहले ‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब'
रूसी और यूक्रेनी अधिकारी इस्तांबुल में सोमवार को बैठक करेंगे और तीन साल के युद्ध को समाप्त करने की अपनी योजनाओं पर बात करेंगे. बातचीत से पहले माहौल सरगर्म है क्योंकि यूक्रेन ने रूस को रूस में घुसकर मारा है.
यूक्रेन ने रविवार को कहा कि उसने अपने खास ड्रोन अटैक से रूस के करीब 40 रणनीतिक बॉमबर्स को नुकसान पहुंचाया है, जिसकी कीमत 7 अरब डॉलर के आसपास है. कीव की सुरक्षा सेवा ने कहा कि इस योजना को बनाने में 18 महीने लगे थे, जिसमें रूस में ड्रोन की तस्करी शामिल थी, जिसे बाद में फ्रंट लाइंस से हजारों किलोमीटर दूर एयरबेस के पास से लॉन्च किया गया था.
इस बीच रूसी सैनिक जमीन पर आगे बढ़ रहे हैं, खासकर उत्तरपूर्वी सुमी क्षेत्र में, जहां पुतिन ने अपनी सेना को सीमा पर "बफर जोन" स्थापित करने का आदेश दिया था. खार्किव के गवर्नर ओलेग सिनेगुबोव ने सोमवार को कहा कि पूर्वोत्तर खार्किव क्षेत्र में बैलिस्टिक हमलों में सात साल के बच्चे सहित कम से कम छह लोग घायल हो गए और एक नागरिक व्यवसाय और एक गोदाम को नुकसान पहुंचा.
हार्वर्ड में विदेशी छात्रों को 'ना' से किसे कितना नुकसान? ट्रंप के फैसले का भारत से ज्यादा चीन पर होगा असर
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हार्वर्ड में विदेशी छात्रों को 'ना' से किसे कितना नुकसान? ट्रंप के फैसले का भारत से ज्यादा चीन पर होगा असर
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को विदशी छात्रों के दाखिले पर 15 फीसदी की सीमा लगानी चाहिए. ट्रंप के इस फैसले का भारत पर क्या असर पड़ेगा. जानिए...
अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ना सपना सच होने जैसा है. इस यूनिवर्सिटी की गिनती दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में की जाती है. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की मुश्किलें बढ़ने लगी है. हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों के दाखिले पर 15 फीसदी की सीमा लगाने की बात कही है. ट्रंप के इस फैसले का विरोध हो रहा है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रशासन ने भी ट्रंप प्रशासन के फैसले को गैरकानूनी बताया है. लेकिन ट्रंप का यह फैसला यदि लागू होता तो किस देश को कितना नुकसान होगा? इसका भारत पर क्या असर पड़ेगा? आंकड़ों के जरिए पूरी कहानी.
ट्रंप का दावा- हार्वर्ड में 31 फीसदी छात्र विदेशी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर एक बार हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को निशाना बनाया है . ट्रंप ने दावा किया कि हार्वर्ड में पढ़ने वाले 31 फीसदी छात्र विदेशी हैं . ट्रंप ने कहा कि हार्वर्ड को विदशी छात्रों के दाखिले पर 15 फीसदी की सीमा लगानी चाहिए .
हार्वर्ड में इस समय दुनिया भर के 150 देशों के 10518 छात्र
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इस समय दुनियाभर के 150 देशों के 10,158 छात्र पढ़ रहे हैं . अगर हार्वर्ड में विदेशी छात्रों के दाखिले पर 15 फीसदी सीमा लगाई तो इसका नुकसान सबसे ज्यादा किस देश के छात्रों को होने वाला है ? इसे आंकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं .
भारत के करीब 8 तो चीन के छात्र 21 फीसदी
सत्र 2024-25 में कुल विदेशी छात्रों में भारतीय छात्रों की संख्या लगभग 8 फीसदी है जबकि चीनी छात्रों की संख्या 21 फीसदी . यानि कि ट्रंप अपनी बात पर अड़े रहे तो इस फैसले का सबसे ज्यादा नुकसान चीन को होने वाला है भारत को नहीं.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में किस देश से कितने छात्र?
हार्वर्ड में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या पिछले 5 सालों में 500 से 800 के बीच रही है. जबकि कुल विदेश छात्रों की संख्या 7500 से 10,000 के करीब.
हार्वर्ड में भारतीय छात्रों की संख्या भले ही कम रही हो पर पूरे USA में ये संख्या लगातार बढ़ती रही है . पिछले सत्र में चीन का पछाड़ कर USA में सबसे ज्यादा विदेशी छात्र भारत से पढ़ने के लिए आए. कुल विदेशी छात्रों में भारतीय छात्रों का हिस्सा 29 फीसदी से भी अधिक था.
साल दर साल USA में कैसे बढ़े भारतीय छात्र
इतनी बड़ी संख्या में पढ़ने भारतीय छात्र अमेरिका आ रहे हैं लेकिन ये जानना भी दिलचस्प रहेगा कि उनके पसंदीदा कोर्स क्या हैं ? USA में पढ़ने वाले 43 फीसदी भारतीय छात्र गणित और कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहे हैं . इसके बाद लगभग एक चौथाई छात्र इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे . बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या 11 फीसदी है.
अमेरिका में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों का पसंदीदा कोर्स
अमेरिका जाने का सपना लिए भारतीय छात्रों को आजकल मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है . उसकी वजह है ट्रंप सरकार का फिलहाल स्टूडेन्ट वीजा पर रोक लगा देना . लेकिन आंकड़े ये बताते हैं कि पिछले साल से भारत के छात्र दूसरे देशों की तरफ भी रुख कर रहे हैं.
अमेरिका से ज्यादा जर्मनी, रूस जा रहे भारतीय स्टूडेंट
इन देशों में भारतीय छात्रों के दाखिले में खासी बढ़ोत्तरी देखने को मिली है . 2023 के मुकाबले 2024 में 49 फीसदी ज्यादा भारतीय छात्र जर्मनी पढ़ने गए. रूस के लिए ये आंकड़ा 34 फीसदी रहा और आयरलैंड के लिए 30 फीसदी रहा . सिंगापुर और न्यूजीलैंड जैसे देश भी भारतीय छात्रों की पसंद बन कर उभरे हैं. साफ है कि USA , UK और कनाडा जैसे देशों से इतर भी भरतीय छात्र अपना विकल्प तलाश रहे हैं .
USA, UK और कनाडा जैसे देशों से इतर भी भरतीय छात्र तलाश रहे अपना विकल्प
इन आंकड़ों से साफ जाहिर है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर ट्रंप प्रशासन के फैसलों से भारत से ज्यादा असर चीन को पड़ेगा. जहां तक रही भारतीय छात्रों की बात तो भारतीय संसद में दी गई जानकारी यह साफ करती है कि भारत के छात्र अब विदेशों में पढ़ाई के लिए जर्मनी, रुस, सिंगापुर जैसे देशों को प्राथमिकता दे रहे हैं.
ट्रंप प्रशासन का विदेशी छात्रों पर एक और 'स्ट्राइक', अब अंतरराष्ट्रीय छात्र वीजा इंटरव्यू पर लगाई रोक
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ट्रंप प्रशासन का विदेशी छात्रों पर एक और 'स्ट्राइक', अब अंतरराष्ट्रीय छात्र वीजा इंटरव्यू पर लगाई रोक
ट्रंप प्रशासन ने विदेशी छात्रों के वीजा इंटरव्यू पर अस्थायी रोक लगा दी है. यह कदम सोशल मीडिया अकाउंट्स की गहन जांच को अनिवार्य करने की योजना के तहत उठाया गया है.
अमेरिकी विदेश विभाग ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए नए वीजा इंटरव्यू अस्थायी रूप से रोक दिए हैं. यह निर्णय सोशल मीडिया गतिविधियों की कड़ी जांच की तैयारी के तहत लिया गया है. आदेश में कहा गया है कि विस्तृत दिशा-निर्देश जब तक जारी नहीं होते, तब तक अमेरिकी दूतावास और वाणिज्य दूतावास नए छात्र (F), व्यावसायिक (M) और एक्सचेंज विजिटर (J) वीजा इंटरव्यू की नई अपॉइंटमेंट्स नहीं लेंगे.
हालांकि, जिन आवेदकों के इंटरव्यू पहले से निर्धारित हैं, वे यथावत जारी रहेंगे. यह कदम ट्रंप प्रशासन की व्यापक "एक्सट्रीम वेटिंग" नीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य वीजा आवेदकों की सोशल मीडिया गतिविधियों की गहन जांच करना है. इसमें इंस्टाग्राम, एक्स (पूर्व में ट्विटर), टिकटॉक और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर पोस्ट, लाइक, कमेंट और शेयर की गई सामग्री की समीक्षा शामिल है.
इस नीति के तहत, विशेष रूप से उन छात्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिन्होंने अमेरिका विरोधी या ट्रंप विरोधी विचार व्यक्त किए हैं, या जो फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों में शामिल हुए हैं. ऐसे छात्रों की वीजा स्थिति की समीक्षा की जा रही है, और कुछ मामलों में वीजा रद्द भी किए गए हैं.
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह अस्थायी रोक अंतरराष्ट्रीय छात्रों की अमेरिका में पढ़ाई की योजनाओं को प्रभावित कर सकती है. अमेरिकी विश्वविद्यालयों में लगभग 11 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्र पढ़ते हैं, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सालाना 40 अरब डॉलर से अधिक का योगदान देते हैं.