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क्या धार्मिक स्थलों पर लगा सकते हैं अशोक चिह्न, राष्ट्रीय प्रतीक तोड़ने पर कितनी सजा?
क्या धार्मिक स्थलों पर लगा सकते हैं अशोक चिह्न, राष्ट्रीय प्रतीक तोड़ने पर कितनी सजा?

'द स्टेट इम्ब्लेम ऑफ इंडिया (प्रोहिबिशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट, 2005 में इस बारे में स्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं. इसके मुताबिक, अशोक स्तंभ का इस्तेमाल भारतीय सरकार, राज्य सरकार और अधिकृत संस्थाएं कर सकती हैं.
जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में हजरतबल दरगाह में अशोक चिह्न को तोड़ने की घटना ने विवाद खड़ा कर दिया है. दरगाह के सौंदर्यीकरण के लिए रेनोवेशन का काम पूरा होने के बाद वहां लगाए गए एक बोर्ड पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ उकेरा गया था. कुछ लोगों ने इस्लामिक मान्यताओं को हवाला देते हुए विरोध किया और इसे पत्थरों से तोड़ डाला. इस घटना ने सियासी बवाल खड़ा कर दिया है. पुलिस ने इस मामले में बीएनएस की विभिन्न धाराओं और राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत केस दर्ज किया है.
सवाल ये है कि धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीकों का इस्तेमाल करना चाहिए या नहीं. दूसरा बड़ा सवाल ये है कि राष्ट्रीय प्रतीक को तोड़ा जाना कानूनन कितना बड़ा अपराध है और इसकी सजा क्या है.
बीजेपी ने इस घटना को राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान बताते हुए दोषियों को सख्त सजा देने की मांग की है. दूसरी ओर उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती का कहना है कि धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल ही क्यों किया गया. जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा कि राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल करने से बचा जा सकता था, फिर ये बवाल नहीं होता.
धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल सही या गलत?
सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करनेवाले एडवोकेट कुमार आंजनेय शानू बताते हैं कि ऐसा करने से बचा जाना चाहिए था. उन्होंने बताया, 'द स्टेट इम्ब्लेम ऑफ इंडिया (प्रोहिबिशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट, 2005 में इस बारे में स्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं. इसके मुताबिक, अशोक स्तंभ का इस्तेमाल केवल भारतीय सरकार, राज्य सरकार और अधिकृत संस्थाएं कर सकती हैं.
व्यापारिक इस्तेमाल, प्राइवेट संस्थाएं या संगठन, ट्रेड लोगो, व्यक्तिगत पहचान या अनधिकृत इस्तेमाल पर रोक है. बिना अनुमति ऐसा करना अपराध की श्रेणी में माा जाएगा. धार्मिक स्थल या अपने भवन पर इसका इस्तेमाल करना भी कानून का उल्लंघन माना जाता है.
अशोक स्तंभ का गैरकानूनी इस्तेमाल करने पर दो साल तक की सजा का प्रावधान है. साथ ही 5 हजार रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है. बार-बार उल्लंघन करने पर ये सजा बढ़ाई जा सकती है.
अशोक चिह्न को नुकसान पर कितनी सजा?
एक बड़ा सवाल ये भी है, जिन्होंने अशोक चिह्न की आकृति को तोड़ा है, उन्हें क्या सजा मिल सकती है. इस बारे में आंजनेय बताते हैं कि राष्ट्रीय प्रतीकों की सुरक्षा और सम्मान के लिए भी विशेष कानून बनाए गए हैं. ऐसे मामलों में राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 और राष्ट्रीय प्रतीक (अनुचित उपयोग पर रोक) अधिनियम, 2005 दोनों ही ऐसे मामलों में लागू होते हैं.
इन कानूनों के अनुसार अगर कोई राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है. वहीं, अनुचित इस्तेमाल और तोड़फोड़ करने पर भी दो साल तक की कैद और 5 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.
'द स्टेट इम्ब्लेम ऑफ इंडिया (प्रोहिबिशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट, 2005 में इस बारे में स्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं. इसके मुताबिक, अशोक स्तंभ का इस्तेमाल भारतीय सरकार, राज्य सरकार और अधिकृत संस्थाएं कर सकती हैं.
जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में हजरतबल दरगाह में अशोक चिह्न को तोड़ने की घटना ने विवाद खड़ा कर दिया है. दरगाह के सौंदर्यीकरण के लिए रेनोवेशन का काम पूरा होने के बाद वहां लगाए गए एक बोर्ड पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ उकेरा गया था. कुछ लोगों ने इस्लामिक मान्यताओं को हवाला देते हुए विरोध किया और इसे पत्थरों से तोड़ डाला. इस घटना ने सियासी बवाल खड़ा कर दिया है. पुलिस ने इस मामले में बीएनएस की विभिन्न धाराओं और राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत केस दर्ज किया है.
सवाल ये है कि धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीकों का इस्तेमाल करना चाहिए या नहीं. दूसरा बड़ा सवाल ये है कि राष्ट्रीय प्रतीक को तोड़ा जाना कानूनन कितना बड़ा अपराध है और इसकी सजा क्या है.
बीजेपी ने इस घटना को राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान बताते हुए दोषियों को सख्त सजा देने की मांग की है. दूसरी ओर उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती का कहना है कि धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल ही क्यों किया गया. जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा कि राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल करने से बचा जा सकता था, फिर ये बवाल नहीं होता.
धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल सही या गलत?
सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करनेवाले एडवोकेट कुमार आंजनेय शानू बताते हैं कि ऐसा करने से बचा जाना चाहिए था. उन्होंने बताया, 'द स्टेट इम्ब्लेम ऑफ इंडिया (प्रोहिबिशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट, 2005 में इस बारे में स्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं. इसके मुताबिक, अशोक स्तंभ का इस्तेमाल केवल भारतीय सरकार, राज्य सरकार और अधिकृत संस्थाएं कर सकती हैं.
व्यापारिक इस्तेमाल, प्राइवेट संस्थाएं या संगठन, ट्रेड लोगो, व्यक्तिगत पहचान या अनधिकृत इस्तेमाल पर रोक है. बिना अनुमति ऐसा करना अपराध की श्रेणी में माा जाएगा. धार्मिक स्थल या अपने भवन पर इसका इस्तेमाल करना भी कानून का उल्लंघन माना जाता है.
अशोक स्तंभ का गैरकानूनी इस्तेमाल करने पर दो साल तक की सजा का प्रावधान है. साथ ही 5 हजार रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है. बार-बार उल्लंघन करने पर ये सजा बढ़ाई जा सकती है.
अशोक चिह्न को नुकसान पर कितनी सजा?
एक बड़ा सवाल ये भी है, जिन्होंने अशोक चिह्न की आकृति को तोड़ा है, उन्हें क्या सजा मिल सकती है. इस बारे में आंजनेय बताते हैं कि राष्ट्रीय प्रतीकों की सुरक्षा और सम्मान के लिए भी विशेष कानून बनाए गए हैं. ऐसे मामलों में राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 और राष्ट्रीय प्रतीक (अनुचित उपयोग पर रोक) अधिनियम, 2005 दोनों ही ऐसे मामलों में लागू होते हैं.
इन कानूनों के अनुसार अगर कोई राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है. वहीं, अनुचित इस्तेमाल और तोड़फोड़ करने पर भी दो साल तक की कैद और 5 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.
